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Wednesday, September 28, 2016

My Poetry Sucks!

I am totally embarrassed about the stupid poetry I have put on my blog. I haven't written anything good for a long time now. I am requesting you to please don't read any poetry please? I will put a good one as soon as I write, I promise you.

Sunday, September 15, 2013

“गुज़रा ज़माना”


बहुत याद आता है वो गुज़रा ज़माना,
वो प्यारा सा बचपन वो मासूम फसाना,

सुबह रोज़ उठकर वो यूनिफॉर्म पहनना,
वो टाई में उलझना वो पापा का सिखाना,

बस स्टॉप पर बस का इंतज़ार करना,
वो खिड़की वाली सीट की ख्वाहिश होना,

"स्कूल प्रेयर" और "थॉट ऑफ डे" से दिन की शुरुआत,
वो "PHE" और "फ्री पीरियड" की राहें ताकना,

"लंच ब्रेक" से पहले "बोरिंग मेथ्स" पढ़ना,
और लंच ब्रेक में सबके टिफिन टटोलना,

फ्री पीरियड में होमवर्क पूरा करना,
फिर शाम को ज़्यादा खेलने की उम्मीद होना,

हर "आन्सर" के बाद वो लाल लाइन खींचना,
और हर एक "डाइयग्रॅम" को सुंदर सा सजाना,

घर जाके सीधा टीवी से चिपकना,
वो मम्मी का डांटना खाने के लिए,

शाम से पहले होमवर्क की जल्दी,
छत पर फिर फुल ऑन क्रिकेट खेलना,

वो दादा दादी से क़िस्से सुनना,
"पता है, आप सुना चुके हो" ये बार बार कहना,

वो मम्मी के हाथों का गर्मा गर्म खाना,
वो पापा के आने कावेट” करना,

सब का छत पर जाकर फिर बातें करना,
तारों और सड़क की गाड़ियों की गिनती करना,

वो पापा का कहना जूते पॉलिश करके रखो,
वो मम्मी का समझाना स्कूल बैग भी जमा लो,

और कुछ ही देर में,
फिर जल्दी से सो जाना,

वो नया दिन फिर वैसे ही जीना,
पर हर दिन में खुशी, हर दिन में कुछ ख़ास होना,

हक़ीक़त था जो, अब हुआ है फसाना,
हक़ीक़त है जो, होगा वही फिर फसाना,

बहुत याद आता है वो गुज़रा ज़माना,
वो प्यारा सा बचपन वो मासूम फसाना |

Thursday, November 3, 2011

“लिबासों की दुनिया, दुनिया के लिबास”


अक्सर यूं ही चलते हुए,
ऊंची ऊंची दुकानों के,
भीड़ भरे रास्तों से गुज़रते हुए,
बस यूं ही मैं सोचा करता हूँ |
उन दुकानों के शीशों से झांकते हुए,
कभी डराते, कभी मुस्कुराते हुए,
चमकीले लिबासों में लिपटे,
ये पुतले; मुझ पर हंसा करते हैं,
और मैं, बस यूं ही इन्हें ताका करता हूँ |
क्या यही हमारी ज़िन्दगानी है ?
जो बस चंद लिबासों की ज़ुबानी है ?
हर वक़्त, हर अवसर, हर जज़्बात,
हर जगह, हर महफ़िल के लिए; है इक लिबास |

हर तमन्ना के लिए इक लिबास,
हर तहज़ीब का है इक लिबास,
उस दुकान पर पाओगे अमीरी का लिबास,
नुक्कड़ पर मिलेगा गरीबी का लिबास |
हंसी का लिबास, खुशी का लिबास,
बेईमानी का लिबास, ईमानदारी का लिबास,
जैसी भी हो ज़रूरत,
है तुम्हारे पास इक लिबास |

पर इन लिबासों की भीड़ में,
लुभावनी और आकर्षक,
इस दिखावटी दुनिया की नींव में,
खो गया है वह,
जिसे ढूंढना है हमें,
सभी पहना करते थे जिसे,
चाहते थे, और दिलों में बसाते थे जिसे,
कहते हैं उसे इंसानियत का लिबास |
देखो ज़रा होगा यहीं,
दूर किसी छोटे से कोने में,
दबा हुआ, कुचला हुआ,
करता हुआ हम से फ़रियाद |

ढूंढ निकालो आज उसे,
पहन लो ये इंसानियत का लिबास,
इसके ऊपर फिर चाहे जिसे भी पहनो,
निखर जाते हैं सभी लिबास |

Wednesday, February 23, 2011

LIFE.... !!!

Life, What is life ?

The cry of a new born baby,
                or the laugh of a kid,
the energy of a youth,
                or the ambition of a new graduate,
the contentment of a happily married daughter's father,
                or the faith of the grandparents...
Why do we aspire something,
                which will soon get destroyed,
Why do we strive for someone,
                who will soon be separated,
Why are we happy about some possession,
                which will soon be lost,
Why do we love this life,
                which will soon be demolished,
Where do we find Life,
                and where are we ought to,
How much should we treasure Life,
                and how much be detached to,
These questions may never be answered,
                if we can't answer,

Life, What is life ?


                                 ------ Ayush Jain